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पृष्ठ:बुद्ध-चरित.djvu/३३

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हुआ है = प्राकृत 'उपजंत' = सं० उत्पद्यन्त, उत्पद्यन् । करता है =करता हुआ है प्रा० करंत = सं० कुर्वन्त, कुर्वन् । आती है = आती हुई है =प्रा० आयंती = सं० आयान्ती । उपजती है = उपजती हुई है = प्रा० उपजंती = सं० उत्पद्यन्ती। करती है = करती हुई है = प्रा० करंती = सं० कुर्वन्ती । इसी प्रकार वह गया = स गतः,उसने किया =तेन कृतम् इत्यादि । पर ब्रजभाषा और अवधी में वर्तमान और भविष्यत् के तिङन्त रूप भी है जिनमें लिंगभेद नहीं है । ब्रज के वर्तमान में यह विशेषता है कि बोलचाल की भाषा में तिङन्त प्रथम पुरुष क्रियापद के आगे पुरुषविधान के लिए 'है' 'हूँ' और 'हो' जोड़ दिए जाते हैं। जैसे, सं० चलति = प्रा० चलइ = व्रज० चलै । उत्पद्यते = प्रा० उपज्जइ = व्रज० उपजै । सं० पठन्ति = प्रा० पढंति, अप० पढई = व्रज० पढ़ैं । उत्तम पुरुष, सं० पठामः = प्रा० पठामो; अप० पढउँ = व्रज पढौं या पढूँ । अब ब्रज में ये क्रियाएं 'होना' के रूप लगा कर बोली जाती हैं,-- जैसे, चलै है, उपजै है, पढ़ैं हैं, पढौं हों या पढूँ हूँ । इसी प्रकार मध्यम पुरुष “पढ़ौ हौ" होगा । वर्तमान के तिङन्त रूप अवधी की बोलचाल से अब उठ गए हैं पर कविता में बराबर आए हैं उ० — (क) पंगु चढ़ैं गिरिवर गहन, (ख) बिनु पद चलै सुनै बिनु काना । भविष्यत् के तिङन्त रूप अवधी और ब्रज दोनो में एक ही हैं — जैसे, करिहै, चलिहै, होयहै =अप० करिहइ, चलिहइ, होइहइ = प्रा० करिस्सइ,