( ५१ ) चलती ब्रजभाषा का प्रयोग किया है और किसने अवधी और कुछ पुराने रूपों को मिला कर एक कृत्रिम सामान्य भाषा का आश्रय लिया है। अवधी और ब्रज में स्वरूप- भेद देख कर हम समझ सकते हैं कि दोनों का सौंदर्य अलग अलग है । एक में दूसरे का पुट देने से भाषा के स्वाभाविक सौंदर्य में कुछ विधात पड़ता है। यद्यपि अवध और बुंदेलखंड में ब्रजभाषा पर पूर्ण अधिकार रखनेवाले अच्छे अच्छे कवि हुए हैं पर उन्होंने मिश्रभाषा का आश्रय जगह जगह लिया है। बुंदेलखंड की भाषा यद्यपि ब्रजभाषा ही है पर उसका लगाव उन प्रदेशों से बहुत दूर तक है जिनमें अवधी बोली जाती है। बघेलखंड की भाषा ता अवधी है ही। इधर फतहपुर और बाँदे तक अवधी चली गई है। नीचे ब्रजभाषा की कविता में अवधी या पूरबी प्रयोगों के कुछ उदाहरण दिए जाते हैं- (१) कहा रन मंडन मा सन आयो ।-केशव । (२) धिक तो कह जो अजहूँ तू जियै ।-केशव । (३) माता पिता कवन कौनहि कर्म कीन? विद्याविनोद सिख, कौनहि अस्त्र दीन ?-केशव । (४) पुत्र ! ही विधवा करी तुम कर्म कीन दुरंत । -केशव । (५) रामहि राम कहै रसना, कस ना तु भजै रस नाम सही को।-पद्माकर ।
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