पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१०

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महान् बुद्ध वह अपने पाँचों शिष्यों को यह नवीन सत्य बताने के लिए काशी गया । मार्ग में उसे उपक नामक मनुष्य मिला जो जीवन- भर योगियों के साथ रहा था। उसने गौतम को गम्भीर और शॉत देखकर पूछा-"कहो, तुमने किस विचार से संसार त्यागा है, तुम्हारा विचार क्या है, तुम्हारे गुरु कौन हैं ? गौतम ने कहा-"मेरा कोई गुरु नहीं। मैंने सब कामनाओं का दमन किया, मैंने इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की, मुझे महान् ज्ञान हुश्रा, मैंने निर्वाण प्राप्त किया, मैं संसार में अमरत्व का ढिंढोरा पीटने काशी जा रहा हूँ।" उपक ने उसपर विश्वास न किया और दूसरा रास्ता पकड़ा। शाम के समय गौतम ने बनारस में प्रवेश किया । वहाँ उसे उसके पुराने शिष्य मिले और उन्हें उसने अपना नया सिद्धान्त बतलाया । उसने कहा-“हे शिष्यो ! जिन्होंने संसार को त्याग दिया है, उन्हें ये दो बातें कभी नहीं करनी चाहिये-(१)जिन बातों से मनोविकार उत्पन्न होते हों, वे बातें । (२) तपस्याएं जो केवल दुःख देनेवाली हैं और जिनसे कोई लाभ नहीं। इन दोनों बातों को छोड़कर बीच का मार्ग ग्रहण करो जिसको 'बुद्ध' ने प्रकट किया है । इससे मन को शान्ति और पूर्ण आनन्द अर्थात् निर्वाण प्राप्त होता है। और तब उसने दुःख, दुःख के कारण और दुःखों को नाश करने के सम्बन्ध की बातें बताई, और उसने अपनी प्रसिद्ध शिक्षाएं दी- (१) यथार्थ विश्वास (२) यथार्थ उद्देश्य (३) यथार्थ भाषण