बौद्धों के धर्म-साम्राज्य का विस्तार लिए भारतवर्ष से कुछ भिक्षु और प्रचारक बुलवाए, लेकिन इस समय भारतवर्ष में बौद्ध-धर्म का ह्रास हो गया था । इसलिए तिब्बत में कोई अच्छा विद्वान् भितु नहीं जा सका । अन्त में पद्मसंभव नामक एक बौद्ध भिक्षु तिब्बत में पहुँचा । लेकिन वह वनयान सम्प्रदाय का था। इसलिए तिब्बत में बौद्ध-धर्म के प्रचार के साथ ही साथ तान्त्रिक ग्रंथों का भी प्रचार होने लग गया। इसके पश्चात् ही तिव्बत के बौद्ध भिक्षु लामा कहलाने लगे और वह राजाओं से भी बड़े माने जाने लगे। आज भी लामाओं का पद राजा से भी बड़ा माना जाता है । वहाँ के जङ्गली नियमों और रीति-रिवाजों के कारण तिब्बत का बौद्ध-धर्म एक बिलकुल अनोखी चीज़ बन गई। चीन में महाराज मिंगनी ने सबसे प्रथम बौद्ध-धर्म ग्रहण किया । यह राजा मसीह की पहली शताब्दि में चीन पर राज्य करता था। एक रात को इस राजा ने यह स्वप्न देखा एक देवता जिसका शरीर १२ फीट ऊँचा था और जिसके शरीर से सोने के समान चमक निकल रही थी, और जिसके मुख से सूर्य के समान प्रकाश फैल रहा था, उसकी तरफ आया और चला गया । प्रातःकाल उठकर उसने अपने मन्त्रियों से जो इस प्रश्न पूछा तो मन्त्रियों ने कहा--भारत में एक ऐसे देव.प्रकट हुए हैं। आप उनके दर्शन कीजिए, उन्होंने आपको स्वप्न में दर्शन दिये हैं। यह सुनकर राजा ने अठारह विद्वानों को जो चीन के प्रसिद्ध विद्वान् थे, चुनकर एक प्रतिनिधि मण्डल बनाया और इन्हें का अर्थ
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