बुद्ध और बौद्ध धर्म ११० हाल ही में बहुत-से जर्मन और अंग्रेज विद्वानों ने मध्य- एशिया और अफगानिस्तान में कई बातों का पता लगाया है। थोड़े दिनों पहले लोग यह नहीं जानते थे कि अफगानिस्तान में बौद्धों के क्या चिन्ह हैं ? परन्तु फ्रांस के प्रसिद्ध विद्वान् फूसर ने अफगानिस्तान के अमीर की आज्ञा से पहले-पहल सन् १८६७ ई० में खोज करना शुरू किया । वहाँ उसको अनेकों बातें मिलीं। वह बहुंत-सी बौद्ध मूर्तियाँ और अन्य वस्तुएँ उठाकर फ्रांस में लेगया और वहाँ उन्हें फ्रॉस के म्यूजियम में रक्खा, जिनको कि देखकर यूरोप के विद्वानों ने भारतीय प्राचीन कारीगरी का आश्चर्यजनक पता पाया। जलालाबाद, हिदा और काबुल में बौद्ध-कालीन मुर्तियाँ, मूर्ति- खंड और बहुत-से चिन्ह मिले हैं, जो बौद्ध-युग के शिल्प के सच्चे नमूने हैं । यहाँ बहुत-से स्तूप, बिहार, चैत्य और मूर्तियाँ मिली हैं; जैसी तक्षशिला और तख्तवाही आदि के धुस्सों में मिली थीं। हिदा में जो स्तूप मिला है, उसे अफगान पश्तो भाषा में 'खायस्ता का स्तूप' कहते हैं। खायस्ता का अर्थ विशाल है, जो स्तूप को देखकर 'यथानामा तथा गुणः'प्रतीत होता है । यहाँ पर चीनी यात्री फाहियान ने एक अभ्रंकश बौद्ध-बिहार देखा था, उसके विषय में उसने लिखा था-पृथ्वी चाहे फट जाय, और आकाश डोलने लगे, पर यह बिहार विध्वंस होने का नहीं। हाय ! पर वह विध्वंस हो ही गया !! यह काल की माया है। हिद्दा में बुद्ध की खोपड़ी, दाँत और दंड रक्षित थे। उनकी रक्षा
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