पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/११७

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बुद्ध और वौद्ध-धर्म

मठ और मन्दिर थे। काबुल में भी बहुत-से स्तूप और बिहार थे; किन्तु उनकी जगह अब कुछ नहीं है । परन्तु वहाँ एक स्तम्भ तो ज्यों-का-त्यों ही खड़ा है। न वह भूकम्पों से भूमिक्षात हुआ है और न मूर्ति-भंजक ही उसका कुछ बिगाड़ सके। बामियान में जब हुएनसाँग गया था तो उस समय वहाँ बौद्ध-धर्म का खूब प्रचार था । यहाँ १००० मिनु थे । यहाँ बुद्ध की एक पत्थर की १५० फीट ऊंची मूर्ति और एक १०० फीट ऊंची धातु की मूर्ति आकाश से बातें करती थीं। छोटी-मोटी मूर्तियाँ अगनित थीं। यहाँ अब भी एक बड़ी भारी मूर्ति है, जिसे अभी सन् १८७६ में, अभी जो अफगान का युद्ध हुआ था, तब जनरल के ने भी उसे देखा था। वहाँ के निवासी इसे अस्दाह कहते हैं और उनका यह खयाल है कि अस्दाह को किसी मुसलमान ने मारा था, उसी का यह स्मारक है। जो बामियान शहर बौद्धों के समय में धन-धान्य और व्यापार का केन्द्र था। जहाँ हजारों कोसों से सैकड़ों देशों के यात्रियों के जत्थे-के-जत्थे आया करते थे, उसे आठवीं शताब्दि में अरबों ने तहस-नहस कर दिया और लाखों भिक्षुओं को तलवार के घाट उतारा और वहाँ की इमारतों को तोड़-फोड़ कर खंडहर बना डाला। इसके बाद बामियान नगर तुर्कों के हाथ में आया और उसे भी चंगेज़खाँ मंगोल ने १२वीं शताब्दि में फिर नष्ट कर दिया।