बौद्ध-धर्म-साहित्य ईसा से पूर्व छठी शताब्दि में, समाज की दशा ऐसी होगई थी कि धर्म के स्थान पर विधान होगये थे । ब्राह्मणों के अधिकार अपरिमित थे, और शूद्रों के लिए कठोर विधान थे। उस समय बुद्ध ने अपने नवीन धर्म का प्रचार किया। उसका धर्म दया और उदारता की भित्ति पर था। उसकी दृष्टि में कष्टकर धर्म-विधान निरर्थक थे। वह दुखी जनों से सहानुभूति रखता और उनके लिए आत्मोन्नति और पवित्र जीवन देता था। उसकी दृष्टि में ब्राह्मण और शूद्र एक थे। उसका यह धर्म कुछ शताब्दियों में समस्त एशिया का मुख्य धर्म होगया। वह वास्तव में नवीन धर्म निर्वाण करने का इच्छुक न था । वह उसी प्राचीन पवित्र धर्म में संशोधन कर रहा था। और, ५० वर्ष तक वह धर्म-सेवा करता रहा ।. अब से ५० वर्ष पूर्व बौद्ध-ग्रन्थों के सम्बन्ध में लोगों को कुछ भी ज्ञान न था । सन् १८२४ में प्रसिद्ध पादरी डॉक्टर मार्श- मेल साहब ने बुद्ध के विषय में इतना ही लिखा था कि उसकी पूजा सम्भवतः इजिप्ट के एपिस से सम्बन्ध रखती है। इसके बाद
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