११६ बौद्ध-धर्म-साहित्य यह महान पुरुष ईसा से ५५७ वर्षे पूर्व जन्मा, और ईसा से ४७७ वर्ष पूर्व मरा । उसकी मृत्यु के पीछे मगध की राजधानी राजगृह में ५०० भिक्षुओं की एक सभा हुई। इन्होंने स्मरण रखने के लिए पवित्र नियमों को गाया । इसके १०० वर्ष बाद दूसरी सभा ईसा से ३७७ वर्ष पूर्व वैशाली में हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य उन दस प्रश्नों पर निर्णय करना था, और जिनके विषय में मतभेद हो गया था। इसके १३५ वर्षे पीछे मगध के सम्राट अशोक ने धर्म- पुस्तकों अर्थात् पिटकों को अन्तिम बार निश्चित करने के लिए ईसा से २४२ वर्ष पूर्व एक सभा पटने में की, जिसका वर्णन ऊपर किया जा चुका है। इसी अशोक ने असीरिया, मेसीडन और ईजिप्ट में धर्म प्रचारक भेजे थे। उसने ईसा से २४२ वर्ष पूर्व अपने पुत्र महेन्द्र को वे ही 'पिटक' लेकर लंका भेजा था । लंका के राजा तिषा ने वह धर्म ग्रहण किया था। इस प्रकार ईसा से पूर्व तीसरी शताब्दि में लंका ने बौद्ध-धर्म ग्रहण किया, और उस के १५० वर्ष बाद ये 'पिटक' लिपिबद्ध किये गए। इस प्रकार लंका के पाली 'पिटक' मगध के सबसे प्राथमिक बौद्ध-धर्म ग्रन्थ हैं। और ईसा से लगभग ८८ वर्ष पूर्व लिपिबद्ध किये गए हैं। अब यह बात तो सिद्ध हुई कि लंका के त्रिपिटक, ईसा से २४२ वर्ष पूर्व के हैं। पटन की सभा ने सभी अप्रमाणिक ग्रन्थों को सम्मिलित नहीं किया था। विनयपिटक में इस बात के प्रमाण भी हैं कि इस पिटक के मुख्य-मुख्य भाग वैशाली को सभा के पहले अर्थात् ईसा के ३७७ वर्ष से अधिक पुराने हैं; क्योंकि उन
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