पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१२६

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१२३ बौद्ध-धर्म-साहित्य (५) विभंग (शास्त्रार्थ की १८ पुस्तकों का संग्रह) (६) थमक(परस्पर अनुकूल और प्रतिकुल विपयों का वर्णन) (७) कथावत्थु (विवाद के १००० विपय) (८) मिलिन्द वन्द महायान का साहित्य उत्तरीय बौद्ध-साहित्य है। और इसका सम्पादन ईसा की पहली शताब्दि में शकराज कनिष्क के काल में किया गया था । इस राज्य ने जालन्धर में ५०० भिक्षुओं की चौथी सभा बुलाई थी, जो प्राचार्य पूर्णक और वसुमित्र की अध्य- क्षता में हुई थी। इन्होंने पाली त्रिपिटक के आधार पर उसकी स्वतन्त्र टीकारूप ३ श्रेणी के साहित्य का निर्माण किया, जिनके नाम-सूत्र उपदेश, विनय-विभाषा और अभिधर्म-विभापा है। इन में अभिधर्म-विभापा-पंथ कात्यायनिपुत्र के अभिधर्म ज्ञान प्रस्थान शास्त्र की टीका है, जो पाली अभिधर्म पिटक की टीका है। यह प्रन्थ कनिष्क से १०० वर्ष पूर्व यानी बुद्ध-निर्वाण के ३०० वर्ष वाद बन चुका था । इस प्रकार बौद्ध-धर्म-प्रन्थों को संस्कृत रूप देने का श्रेय कनिष्क को ही है। इसी साहित्य में प्रख्यात बौद्ध-दर्शनवाद है । इसके चार भेद हैं-सौमान्तिक, वैभाषिक, योगाचार और माध्यमिक । १-सौमान्तिक दर्शन-आन्तरिक जगत् को स्वीकार करता है, वाह्यजगत् को अनुमान से मानता है। राजगृह में पहली परिषद् जो हुई थी, उसके निर्णय को 'थेरावाद' नाम दिया गया है । उसो के सिद्धांतों के आधार पर इस दर्शन की रचना हुई है। वैशाली की ,