बौद्ध-धर्म-साहित्य यह ग्रन्थ ई. सन से ४०० वर्ष पूर्व का होगा। इसमें बुद्ध के १२० वचनों का संग्रह है। सुत्तनिपात-इस पुस्तक में ७० सूत्र दिये गये हैं जो छन्दोबुद्ध हैं। उनके ५ विभाग हैं। विमानवत्थु और प्रेतवत्थु इन दोनों में स्वर्ग-नर्क तथा प्रेत सम्बन्धी बातें हैं। थेर गाथा तथा थेरीगाथा-थेर अर्थात् स्थविर वृद्ध-पुरुष और थेरी वृद्ध-भिक्षुणी को कहते हैं। इस पुस्तक में वृद्ध-भिक्षु और भिनुणियों के काव्यों का संग्रह है और उनकी जीवन कथा भी दी गई है । इस पुस्तक से बुद्ध कालीन स्त्री-पुरुषों की दिनचर्या का ठीक-ठीक दिग्दर्शन होता है। जातक-कथा में जन्म सम्बन्धी कथाए हैं, जिनमें अधि- कांश बुद्ध के पूर्व जन्म से सम्बन्ध रखने वाली हैं जो उसने प्रसंगवश अपने शिष्यों को सुनाई थीं। मालूम होता है कि ये कथाएँ बुद्ध के समय और बुद्ध के बाद भी बहुत प्रचारित हुई थीं और साँची, अमरावती आदि स्थानों में तो इन कथाओं के आधार पर चित्र तैयार किए गए हैं। चीनी यात्री साहीयान ने भी इस पुस्तक का अपनी पुस्तक में जिक्र किया है। इस पुस्तक में उत्कृष्ट नैतिक विचारों को कथा के रूप में पेश किया गया है। निहेश-'यह सूत्र निपात' ग्रन्थ की टीका मात्र है। परिसंभिदामग्ग-इसमें बौद्ध अईतों की दिव्यदृष्टि के विषय में लिखा हुआ है।
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