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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१४६

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१४३ बुद्ध और बौद्ध-धर्म बौद्ध-काल में भारत को आर्थिक दशा का कुछ पता बौद्धों के जातक ग्रन्थ, तृपिटक ग्रन्थ और यूनानियों के अर्थशास्त्रों में देखने को मिलता है । जातक के देखने से मालूम होता है-जमीन के मालिक किसान ही होते थे । जमींदारी की प्रथा ही नहीं थी। किसान से राजा, साल में एक बार उपज का दसवाँ हिस्सा लेता था। कोई किसान मर जाता और उसके पीछे यदि कोई नहीं होता तो उसका मालिक राजा होता था । जो जमीन बोई नहीं जाती थी, उसका मालिक भी राजा ही होता था । किसी-किसी अवसर पर किसान लोग राजा को भेंट दिया करते थे। इस काल में राजा लोगों को शिकार का बहुत ही शौक होता था। इसलिए हरेक गाँववालों को चरागाह छोड़ना पड़ता था। राजा जो उपज का दसवाँ हिस्सा कर लिया करता था, उसको गाँव का मुखिया और राजा का मन्त्री मिलकर तय किया करते थे। कभी-कभी राजा इस कर को मान भी कर दिया करता था, अथवा किसी धार्मिक संघ के नाम कर दिया करता था । वौद्ध-काल में कुछ राज्य प्रजा- तन्त्र भी थे और कुछ गणतन्त्र भी। उस समय में किस तरह कर उघाया जाता था, इसका ठीक-ठीक वर्णन नहीं मिलता। लेकिन अशोक के एक स्तम्भ से मालूम होता है कि शाक्यों के प्रजातन्त्र में यह कर लिया जाता था; क्योंकि अशोक ने लुम्बुनी नामक पएक ग्राम का कर माफ कर दिया था क्योंकि उसके आस-पास भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। शाक्यों के मल्लों के लच्छिवयों के और कोलिये के प्रजातन्त्र और गणतन्त्र उस समय थे। गाँव