पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१४५

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बौद्ध-काल का सामाजिक जीवन १४२ और जड़ वस्तुएँ एक परमेश्वर से पैदा हुई हैं, वे लोग पुनर्जन्म को भी मानते थे और उनके अन्दर अद्वैत तथा विशिष्टाद्वैत के भी भाव चल निकले । इसका परिणाम यह हुआ कि षड्दर्शनों की सृष्टि हुई । जिस समय षड्दर्शनों की उत्पत्ति हुई, उस समय बुद्ध का जन्म हुआ था। बुद्ध के जन्म के समय लगभग वहत्तर प्रकार के दार्शनिक सम्प्रदाय थे, जोकि षड्दर्शनों के अन्तर्गत थे। लेकिन दो सिद्धान्त सबसे प्रवल थे। एक तो सांख्य था, जोकि आत्मा और प्रकृति में भेद मानता था और दूसरा वेदान्त था, जोकि आत्मा और प्रकृति में अभेद मानता था। लेकिन ये सब सन्यासी आत्मा और प्रकृति के भेदाभेद के सूखे वितण्डावाद में पड़े हुए थे । वह संसार का कोई कल्याण नहीं कर सकते थे। इस प्रकार बुद्ध के जन्म के पहले हिन्दुओं में यज्ञ, तप और दार्शनिक ये तोन प्रकार के जीवन थे। इनकी खूब प्रबलता थी जरूर, लेकिन इनसे मनुष्य के वर्तमान जीवन का कोई सम्बन्ध नहीं था। मनुष्य का दुःख-दर्द किस तरह दूर हो सकता है, इस- का कोई भी सचा उत्तर नहीं था। लेकिन वुद्ध ने सच्चे सुख को प्राप्त करने का उपाय बतलाया । उन्होंने हिंसा, झूठ, चोरी आदि पापों से बचने का उपदेश दिया ओर कहा कि चाहे जो कोई किसी भी जाति का हो, वह सदाचार से और पवित्र जीवन से निर्वाण को प्राप्त कर सकता है और यही कारण था कि बुद्ध का धर्म बहुत ही सानी उस काल में विस्तार पा गया।