बुद्ध और बौद्ध-धर्म १५२ आज यद्यपि बौद्ध-धर्म लगभग नष्ट होगया है,परन्तु जिन देशों में बौद्ध-संस्कृति है, जैसे-तिब्बत, चीन, जापान, लंका, जावा, सुमात्रा और ब्रह्मा। उन देशों में खियों की स्वतन्त्रता उन देशों की त्रियों की स्वतन्त्रता से कहीं अधिक है, जिनपर कि प्राचीन हिन्दू- पन का प्रभाव है। इन देशों के माता-पिता, भाई-भौजाई, प्रेमी और प्रेमिका आपस में अच्छी तरह आजादी से बेरोक-टोक मिलते हैं। वहाँ माता-पिता कन्याओं का विवाह नहीं करते। कन्याएँ दान में नहीं दी जाती।न वहाँ पर्दे की चहारदीवारी है। बौद्ध-धर्म ने स्त्रियों कोजो स्वतन्त्रता दी है, उसका चमकता हुआ उदाहरण ब्रह्मा में मिलेगा। वहाँ जितनी आजादी स्त्रियों को है, शायद दुनियाँ के पर्दे में उतनी किसी देश में भी नहीं है। वहाँ की स्त्रियों की कार्यक्षमता, उद्योग- शीलता और बुद्धिमत्ता पुरुषों से कहीं अधिक बढ़ी-चढ़ी है। बर्मीज विवाह को कोई धार्मिक कृत्य नहीं मानते, किन्तु वहाँ विवाह प्रेम, साहचर्य सद्भाव और सद्धर्म की दृष्टि से होता है। वहाँ सच्चे अर्थ में पति और पत्नी एक-दूसरे के सहचर हैं। अगर उनके परस्पर का प्रेम और सद्भाव नष्ट होजाता है तो उनके दूसरे सम्बन्ध भी छिन्न-भिन्न हो जाते हैं। कोई धार्मिक बन्धन उनको बलपूर्वक बाँधकर नहीं रख सकते । यद्यपि वहाँ की वियों को तलाक का पूर्ण अधिकार है, परन्तु इस किस्म के उदाहरण बहुत कम मिलते हैं। वहाँ स्त्री-पुरुषों के कानून सम्बन्ध में भी कोई भेद- भाव नहीं है। ब्रह्मा का लगभग आधा व्यापार स्त्रियों से चल रहा है। स्त्रियों की व्यापारिक बुद्धि पुरुषों से कहीं अधिक चमकती हुई है।
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