पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१५४

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१५१ चौद्ध-धर्म में स्त्रियों का स्थान से बाँधते हैं, सड़ा और गंदा भूसा खाने को डालते हैं और जब दूध दोहने का समय आता है तो उसके बछड़े को बलपूर्वक उसके स्तनों से छुड़ा देते हैं। और तमाम दूध निकाल लेते हैं । कहने को तो वे गौ-माता की पूजा करते हैं, परन्तु यह पूजा परलेदर्जे का अत्याचार है। ठीक इसी तरह मनु ने स्त्रियों को पूजा बताई है। वह साफ़-साफ़ कहते हैं कि स्त्रियों को अपने पति की पूरी तरह से आज्ञा माननी चाहिये। परन्तु बौद्ध-धर्म उदारता पूर्वक स्त्रियों को पुरुषों के बराबर का दर्जा देता है और वह बतलाता है कि स्त्री और पुरुप को एक मित्र की माँति रहना चाहिये । और यह आज्ञा देता है कि एक दूसरे को ऊंच-नीच नहीं समझे। ईसाइयों का रोमनकैथोलिक सम्प्रदाय भी स्त्रियोंकी स्वतन्त्रता का पक्ष लेता है, परन्तु महान धर्माध्यक्ष पाल के धर्म-पत्रों में यह बात साफ़ तौर से लिखी हुई है कि स्त्रियों को पुरुषो के आधीन ही रहना चाहिये। यदि आप रोमन कैथोलिक के आदेशों को पढ़ेंगे तो आपको इस बात पर पूर्ण विश्वास हो जायगा । इसलिये हम खुली तौर से कह सकते हैं कि जिस काल में सब जातियाँ स्त्रियों को अपना गुलाम बनाने में लगी हुई थीं। उस काल में वुद्ध ने उनका पतित दशासे उद्धार और पूर्णरूप से सुधार किया। न केवल सामाजिक जीवन में वल्कि धार्मिक जीवन में भी स्त्रियों को पुरुषों के बराबर दर्जा दिया । बौद्धों के धर्म का विश्व-व्यापक होने का एक मूल कारण यह भी हो सकता है । .