पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१८४

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१६७ महान् बुद्ध सम्राट अशोक तक राज-कार्य करते रहे, परन्तु वे समय-समय पर साधुवेश धारण करते और मिक्षा भी माँग लिया करते थे। उनकी प्रश- स्तियाँ बताती हैं कि वे धर्मोपदेशक भी थे । अशोक अपने सम्राट होने के २० वर्ष बाद अपने गुरु उपगुप्त के साथ तीर्थाटन को निकले थे। उनके साथ २० हजार शिष्य थे। इस यात्रा में जहाँ- जहाँ चक्रवर्ती ने मुक्काम किया, बहाँ ध्वज स्तम्भ और शिलालेखों की स्थापना की । इस यात्रा में यह महान सम्राट् पाटलिपुत्र से उस प्रदेश से होते हुए जो अब मुजफ्फरपुर और चम्पारन जिले में हैं, हिमालय के पास पहुँचे । फिर वह लिम्बनी वन में पहुंचे। जहाँ बुद्ध ने जल पिया था, वहाँ भी अशोक ने एक धातु-स्तम्भ निर्माण किया, और वह गाँव उसी के लिए जागीर में दे दिया। फिर वे कपिलवस्तु आये, जो वस्ती जिले के पिपरावा गाँव के निकट ही कहीं था । यह बुद्ध के पिताकी राजधानी थी । फिर वह सारनाथ, श्रावस्ती आये, और स्तूप बनवाये । और १० लाख निष्क दान में दिये । फिर गया और कुसीनगर आये । इन सभी स्थलों पर अशोक ने स्तम्भ स्थापित किये। अशोक ने अपने पुत्र और पुत्रियों को दूर देश लंका में धर्म- प्रचारार्थ भेजा, और अन्य विद्वानों को देश-देशान्तरों में । उन्होंने बड़े-बड़े दान किये । उन्होंने औषधालय, जलाशय स्थापित किये। पशु-चिकित्सालय खोला, जीवहिंसा धीरे-धीरे उन्होंने बन्द की। अन्त में सर्वथा बन्द होगई। अशोक ने अपने धर्म-सिद्धान्तों और श्रादेशों के पालनार्थ एक सरकारी महकमा बना लिया था। '