पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/१९

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बुद्ध और बौद्ध धर्म १६ क्षेमा को बुद्ध-धर्म में दिक्षित किया । ११वें वर्ष गौतम ने प्रसिद्ध विद्वान भारद्वाज को चौद्ध बनाया। काशी में भारद्वाज के ५०० हल थे और वह एक बड़ा धन- सम्पन्न कृपक था। एक दिन जहाँ उसके नौकर गरीबों को भोजन बाँट रहे थे वहाँ उसने जाकर देखा कि स्वयं गौतम भिक्षा के लिए खड़े हुए हैं । उसने गौतम को देखकर कहा-'हे सामन ! मैं जोतता और बोता हूँ और जोत-बोकर खाता हूँ। तुझे भी जोतना और बोना चाहिए और जोत-बोकर खाना चाहिए । भगवत् ने कहा-'हे ब्राह्मण ! मैं भी जोतता और घोता हूँ और जोत-बोकर खाता हूँ। भारद्वाज ने कहा-फिर भी हम लोगों को पूज्य गौतम के हल- जुआ वगैरा नहीं दिखाई देते । भगवत् ने उत्तर दिया-धर्ममेरा बीज, तपस्या वर्षा,ज्ञान जूया और हल, विनय बन्धन और उद्योग मेरी बीज लादने की गाड़ी है-और वह मुझे निर्वाण को ले जाती है। वह सीधी मुझे उस स्थान को ले जाती है, जहाँ जाने से दुःख नहीं रहता। ब्राह्मण भारद्वाज इस बात को सुनकर लजित हुआ। और तत्क्षण बुद्ध का शिष्य हो गया। १२वें वर्ष, उसने अपने जीवन में, सबसे बड़ी यात्रा की। वह मनल्ला को गया और वनारस होकर लौटा। तब उसने अपने २८ वर्ष के पुत्र राहुल को, प्रसिद्ध महासुत्त राहुल का उपदेश दिया। इसके दो वर्ष उपरान्त राहुल ने भिनु-धर्म ग्रहण किया।