यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२१३ महान वुद्ध सम्राट अशोक , के पोछे एक तीन खाइयाँ थीं, दीवार में ६४ फाटक और स्थान- स्थान पर ५७० बुर्ज बने हुए थे। दीवार लकड़ी की थी, और उस में भीतर से तीर चलाने के लिए छेद बने हुए थे, बीच में राज- महल था । महल के चारों ओर एक रमणीक उद्यान था, जिसमें फ़ौवारे लगे हुए थे। उसके खम्भों पर सोने के चादर चढ़े हुए थे, और सोन-चाँदी के फल, पत्ते, पक्षी आदि बन रहे थे। उसमें स्थान-स्थान पर सिंहासन रक्खे थे, और रत्नपूरित स्वर्णपात्रों से सुसज्जित था । मेगास्थिनीज़ ने उसकी कारीगरी को फारस की कारीगरी से अच्छा लिखा है। कई सौ वर्ष पीछे जब फाहियान चीन से भारत आया, तो उसने इसे देखकर कहा कि यह मनुष्यों की नहीं, प्रत्युत दानवों का काम है । ठीक है, महाभारत में भी मय दानव की कारीगरी की बड़ी प्रशंसा की गई है।