बौद्ध काल का सामाजिक जीवन प्राचीन बौद्ध काल की साम्पत्तिक अवस्था का वर्णन जातक, सुत्तपिटक, विनय पिटक, कौटिलीय अर्थशास्त्र और यूनानियों के भारत वृतान्तों में पाया जाता है जातकों से प्रकट होता है कि प्राचीन बौद्ध काल में जमींदारी प्रथा न थी। किसान अपनी भूमि के सर्वथा स्वामी हुआ करते थे। राजा किसानों से एक बार साल में उपज का दसमाँश ले लेता था। इससे अधिक भूमि पर राजा का अधिकार न था । लावारिस भूमि राजा की गिनी जाती थी। वन भूमि भी राजा की सम्पत्ति थी। विशेष अवसरों और समारोहों पर किसान लोग राजा को भेंट दिया करते थे। राजा के आखेट के लिये भी किसानों को चरागाहें छोड़नी पड़ती थीं । दसमाँश का निर्णय ग्राम-भोजक (गाँव का मुखिया) करता था । यह वर्णन उन गाँवों का है, जो राजाओं के आधीन थे। पर जहाँ प्रजातन्त्र या गनतन्त्र होता था, वहाँ प्रजा से दसमाँश प्राप्त करने का भी कहीं उल्लेख नहीं मिलता है। नैपाल की तराई में जो एक अशोक का स्तम्म समिन्देई गाँव . में मिला है, उसमें इस प्रकार के कुछ करों का भी जिक्र है,
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