बुद्ध और बौद्ध धर्म २१८ का थैला रखना पड़ता था। जो आदमी पड़ोस में आग लगने पर बुझाने नहीं जाता था, उसको १२ पण जुर्माना होता था। और, यदि कोई जान-बूझकर आग लगा दे, तो वह जलती आग में डाल दिया जाता था। आर्थिक उन्नति का प्रधान साधन व्यापार है। उस समय देश-काल के अनुसार व्यापार पर्याप्त था। भारत के भिन्न-भिन्न प्रान्तों में आपस में तो व्यापार होता ही था, मध्य एशिया और मिस्र के यवन राज्यों तक के साथ यहाँ की वस्तुओं का विनिमय होता था । देश के भीतर माल वैलगाड़ियों पर चलता था, और देश के बाहर भारतीय जहाजों में। उस समय का प्रधान सिका कर्पापण था। यह तांबे का होता था। सोने के सिक्कों का भी उल्लेख है, परन्तु चाँदी के सिक्के शायद नहीं होते थे। विशेषतः हुँडियों से काम चलता था। जहाँ धन होता है, वहाँ अपव्यय भी होता है। लोगों को मद्य और चूत का दुर्व्यसन था । शराबखाने राज्य के निरीक्षण में थे। उनमें ऋतु के अनुकूल पुष्प, गन्ध, आसन आदि रक्खे जाते थे। प्रत्येक शरावखाने में एक सरकारी चर यह देखने के लिए नियुक्त रहता था कि कौन कितना पीता है, और किसके पास कितना धन या आभूपण आदि है। यदि शराब पीने के पश्चात् किसी की चोरी होजाती, तो मद्य वेचने वाले को उसकी क्षति पूरी करने के अतिरिक्त जुर्माना भी देना पड़ता था। प्रामों में जुआ खेलना मना था। नगर में प्रत्येक जुआ खेलने
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