पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२११

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म २२४ 2 . के लिये ब्राह्मणों के यहाँ बौद्ध ग्रन्थ और बौद्धों के यहाँ वैदिक ग्रन्थ पढ़ाए जाते थे। काशी, उज्जैन और तक्षशिला की बड़ी प्रसिद्ध थी। जहाँ तक जान पड़ता है, राज की नीति यह थी कि जो अध्यायक हों, उनकी रक्षा और सम्मान किया जाय । यदि आवश्यकता हो, तो भवन- निर्माण के लिये अथवा उनके तथा छात्रों के भरण-पोपण के लिये आर्थिक सहायता भी दी जाय । शिक्षा-पद्धति मौखिक थी । हुएनसांग ने भी, जो इस समय के लगभग १२०० सौ वर्ष पीछे आये। अपने समय की पद्धति को मौखिक ही बतलाया है । पढ़ाने वाले दो प्रकार के थे-कुछ तो ऐसे विद्वान थे, जो नगरों के पास आश्रमों में रहते थे। इनके साथ इनके विद्यार्थियों की टोली रहती था । शिक्षा का प्रधान भार इन पर ही था। इनका लक्ष्य और ढंग वही था, जो प्राचीन काल के वशिष्ठ, अंगीरा, याज्ञवल्क्य शादि कुलपतियों का था । (ऐसे ऋपि को, जिसके साथ १०,००० शिष्य रहते हों,कुलपति कहते थे) इनके अतिरिक्त परिव्राजक और भिक्षुक भी आवश्यक उपदेश, प्रधानतया अध्यात्मिक उपदेश, देते फिरते थे । प्रायः सभी नगरों और ग्रामों के बाहर इनके लिये विश्राम-भवन बने थे। यहीं लोग इनको भोजनादि दे जाया करते थे और इनका उपदेश सुना करते थे। इस सब का परिणाम यह था कि उस समय के शास्त्र, जैस भी थे, उनका ज्ञान सामान्य जनता में व्यापक था। शिक्षा अनिवार्य रही हो या न रही हो, पर प्रजा खूब शिक्षित थी।