बुद्ध और बौद्ध-धर्म २२८ मरहमों और लेपों का अधिक प्रयोग होता है। अन्य औपधियों को ये लोग प्रायः हानिकर समझते हैं। ये दोनों वर्ग (ब्राह्मण और श्रमण) सहन शीलता का बड़ा अभ्यास करते हैं। कभी-कभी ये दिन-दिन-भर एक ही आसन से निश्चल खड़े रह जाते हैं। "इनके अतिरिक्त ज्योतिषी ( रम्माज-अर्थात् ऐसे लोग, जो ज्योतिप के पूर्ण विद्वान न होते हुए भी यही इधर-उधर के लटकों सं त्रिकाल की बातें बताने का दावा करते हैं) और श्रोझा (भूत- प्रेतादि को वश करनेवाले या जादूगर) और प्रेत-कर्म जाननेवाले (ऐसे लोग जो मृत्यु के पीछे के संस्कार कराते हैं, महाब्राह्मण) भी होते हैं, जो ग्रामों और नगरों में भिक्षा माँगते फिरते हैं। जो लोग बड़े विद्वान हैं, वे भी परलोक के विपय में ऐसी-ऐसी अन्धविश्वास-मूलक बातों की शिक्षा देते हैं, जिनको सुनकर (और डर कर) लोग धर्माचरण करें । कहीं-कहीं इनके साथ स्त्रियाँ भी दर्शन शास्त्र का अभ्यास करती हैं। अशोक की राजाज्ञाओं से ही विदित होता है कि वे एक शिक्षित प्रजा के लिए निकाली गई थीं। अशिक्षित जनता उच्च कोटि की नैतिक दीक्षा को समझ ही नहीं सकती, उसके लिए जो धार्मिक उपदेश होगा, उसमें पद-पद पर स्वर्ग का प्रलोभन और नरक का भय विद्यमान होगा। वह कदापि ऐसी शिक्षा को ग्रहण न कर सकेगी जिसमें ईश्वर तक का पता न हो। उस समय शिक्षित जनता के सामने क्या साहित्य था, यह "
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