पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२१६

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२२६ बौद्ध-काल का सामाजिक जीवन . ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता । वेद तो थे ही, परन्तु तत्कालीन बौद्ध-ग्रन्थों में अथर्व वेद का कहीं नाम नहीं आता। इससे यही अनुमान होता है कि उस लमय अथर्व वेद और वेदों से पृथक् नहीं किया गया था । प्राचीन वैदिक धर्म की प्राचीन पुस्तकों में तीन ही वेदों का नाम आता है। कई स्थलों पर ऋक, यजु, साम के साथ साथ 'अंगिरस' शब्द आता है, और वह अब अथर्व वेद के अर्थ में लिया जाता है, क्योंकि कहीं-कहीं अथर्वा गिरस' नाम भी पाता है। पर यह स्पष्ट है कि अथर्व वेद और वेदों से पीछे बना था । वदों के अपौरुपे यन पर ध्यान देते हुए यों कहिए कि उसके मंत्रों का संग्रह पीछे हुआ, और बौद्ध-ग्रन्थों के प्रमाण से ऐसा ज्ञात होता है कि कम-से-कम अशोक के समय तक यह काम नहीं हुआ था। गृह्यादि और सूत्र अवश्य रहे होंगे, नहीं तो लोगों को कर्मकाण्ड की शिक्षा कैसं दी जाती । स्मृतियों का प्रश्न टेढ़ा है। इसमें सन्देह नहीं कि बीज रूप से स्मृतियाँ रही होंगी, क्रम से इनके मुख्य सिद्धान्तों के अनुसार कार्यवाही होती रही होगी, अधिकांश विद्वानों की यह सम्मति है कि वर्तमान स्मृति ग्रन्थ उस समय नहीं थे। मनुस्मृति भी, जो सबसे प्राचीन और प्रामा- णिक मानी जाती है, गुप्त-काल अर्थात् अशोक से लगभग सातसौ वर्प पीछे की बनी मानी जाती है। उस समय शायद इतिहास-ग्रन्थ अर्थात् रामायण और महा- भारत भी नहीं थे। इसका भी यही प्रमाण है कि बौद्ध-ग्रन्थो में इनका नाम नहीं मिलता। यह प्रमाण पर्याप्त नहीं है, पर अनुमान-