बुद्ध और बौद्ध धर्म २३२ सार्वभौम सम्राट थे। महा भारत के बाद से लेकर चन्द्रगुप्त के समय तक कोई साम्राज्य न बना था। शहरपनाह कलड़ी की बनाई जाती थी। धार्मिक मन्दिर बहुत कम थे, क्योंकि मूर्ति पूजा नहीं थी। अशोक ने स्तम्भ और स्तूप बनवाने शुरू किए थे। साधु- लोगों के एक-दो बड़े-बड़े विहार थे, परन्तु बहुधा वे भ्रमण किया करते थे, केवल चातुर्मास में वे नगर के बाहर अस्थायी छप्परों में रहा करते थे। हिन्दुओं के मन्दिर और बौद्धों के बिहार पीछे के वने हुए है। हाल ही में एक शिला-लेख कलिंगराज शखारवेल का मिला है, जो अशोक से लगभग १६० वर्ष पीछे जैन-धर्मानुयायी प्रतापी राजा हुए थे. उस पर १६५ मौर्य-सम्बत दिया हुआ है, उसका विषय यह है- "पाँचवें वर्ष-तनसूलिय से राजधानी में वह नहर लाए, जो नन्द राज ने ३०० वर्ष पहले खुदवाई थी। उन्होंने प्राची नदी के दोनों ओर 'महा विजय प्रासाद'नामक राज महल ३८ लाख व्यय करके बनवाया " इस लेख से तत्कालीन परिस्थिति का एक अनुमान होता है । दक्षिण भारत ज्ञात हो चुका था। अगस्त जी शिल्प और कृषि के प्राचार्य थे, विन्ध्याचल पार करके दाक्षिणा पंथ का आविष्कार कर चुके थे। चन्द्रगुप्त के महल को देखकर मेगस्थिनीज ने कहा था कि वह महल सूसा और एकूतानां के महलों से सुन्दर था। राजाओं के मकान सात मंजिले तक होते थे, जिन्हें 'सप्त भूयक
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