२३५ बौद्ध काल का सामाजिक जीवन से विवाह किया था । पर राजा होने पर उसे त्याग देना पड़ा, क्योंकि वह उच्च कुल की नहीं थी। उससे उसे एक पुत्र भी हुआ था। पाटलीपुत्र में आकर उसने कई विवाह किए । एक रानी का नाम कामवाकी था, जो कट्टर वौद्ध थी। एक प्रशस्ति में उसका जिक्र है । एक महिषी का नाम असंधिमित्रा था, जो अशोक के जीवन में ही मर गई थी, जिससे उन्हें बहुत कष्ट हुआ था । वृद्धावस्था में उन्होंने तिष्यरक्षिता से विवाह किया था। इस स्त्री ने अशोक के धर्म जीवन और प्रशांत वृद्धावस्था को छिन्न-भिन्न कर दिया । इस बौद्ध से तथा सम्राट के धर्म-भाव से घृणा थी। इसने बोधिवृक्ष को नष्ट कराने का पड़यन्त्र रचा, फिर इसने सौतेले पुत्र कुणाल पर कुदृष्टि की और उसकी आँखें फुड़वाई । अन्त में वह सम्राट की श्राजा से जीवित जलवा दी गई। वास्तव में अशोक जैसे महान सम्राट और धार्मिक पुरुप के लिये वृद्धावस्था में युवती से विवाह करना अतिशय निन्दनीय था। ३८ वर्ष राज्य करकं यह सम्राट मृत्यु को प्राप्त हुए । अशोक के साथ मौर्य-वैभव भी विलुप्त हुआ। उनके बाद के राजा होने के ठीक प्रमाण नहीं मिलते । भिन्न-भिन्न बातें हैं, जिन पर वहस करने का यह स्थान नहीं। उनकी मृत्यु पर साम्राज्य के कई टुकड़े हो गए। करद राज्य स्वाधीन हो गए। कलिंग और आँध्र दोनों पृथक् हो गए थे। इस प्रकार मौर्य साम्राज्य के ध्वंस होने पर मोर्यवंश भी विभाजित हो गया। प्रधान शाखा मगध में रही । पर उसका विस्तार घटता ही गया । अन्त में राजा बृहद्रथ
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