पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२५१ दो अमर चीनी बौद्ध-भिक्षु पाँचवें और नवें महीनों के छ:-: वृत्त करनेवाले दिनों में स्तूपों की पूजा करते हैं, वे लोग अपनी रनजटित पताकाओं को खड़ी करते हैं। बहुमूल्य छातों के झुण्ड जालों की तरह दीख पड़ते हैं। धूप का धुआँ बादल की तरह उठता है, वृष्टि की तरह फूल वर्षाय जाते हैं, सूर्य और चन्द्रमा उममें इस भांति छिप जाते हैं. मानो चाटियों पर वादलों से ढक लिये गये हों। देश का राजा, मन्त्री और बड़े-बड़ लोग इन धर्म-कार्यों में बड़े उत्साह के साथ भाग - लेते हैं। थानेश्वर के राज्य के विपय में वह लिखता है-"इस राज्य का रा १४०० मील और इसकी राजधानी का ४ मील है। यहाँ का जलवायु अच्छा और जमीन उपजाऊ है। इसकी राजधानी प्राचीन कुरुक्षेत्र के युद्ध-स्थल के निकट है।" महाभारत के युद्ध के विपय में वह लिखता है-"दो राजाओं न पाँचों खण्डों को परस्पर में बाँट लिया और यह घोषणा की कि जो कोई भी इस भावी युद्ध में मारा जावेगा,वह मुक्ति प्राप्त करेगा। वहाँ लकड़ियों की तरह मृतकों के ढेर लग गये और उनकी हड़ियों से आज भी सर्वत्र वह भूमि ढकी हुई है।" हुएनत्संग फिर 'श्रध्नु' (उत्तरी द्वार) के राज्य में आया, जिसके पूर्व में गंगा और उत्तर में हिमालय था और जिसका १२०० मील का घेरा था । यही प्राचीन कुरु लोगों की भूमि थी। विस्तृत समुद्र की तरह लहराती हुई गंगा की लहरों को देखकर हुएनत्संग आश्चर्यान्वित हुआ। मतिपुर (पश्चिमी रुहेलखण्ड) जिस