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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२४५

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म २५८ तपस्याओं की साधना किया करते थे। बीस देव मन्दिरों के बुज और दालान नकाशीदार पत्थर और लकड़ियों के बने थे। सब मन्दिर वृक्षों की छाया में थे। यहां एक महेश्वर की १०० फीट ऊँची एक तांबे की गंभीर और तेज-पूर्ण मूर्ति थी जो सचमुच जीवित-सी जान पड़ती थी । नगर के उत्तर पूर्व के स्तूप के सामने एक दर्पण की भांति उज्ज्वल और चमकदार लोह-स्तंभ था उसका धरातल वर्ष की भांति चिकना और चमकीला था। वरुण नदी से दो मोल पर मृगदाय का विशाल संघाराम था जहां बुद्ध ने पहले-पहल अपना धर्म प्रकाशित किया था। इसके पाठ भाग थे। खण्डहर बुर्ज तथा उसके आगे निकले हुये बालाखानों और गुफाओं में बहुत ही उत्तम काम था। इस बड़े धेरै के बीच में एक २०० कोट ऊँचा बिहार था जिसकी सीढ़ियाँ ईटों की और नींव पत्थर की थी, इसकी छत पर एक सुनहला आम का फल बना हुआ था। विहार के बीचों-बीच एक बुद्ध की मनुष्याकार मूर्ति थी जोकि धर्म के पहिये को चला रही थी। यह मूर्ति इस स्थान के लिये बहुत उपयुक्त थी जहाँ कि उस महान उपदेशक ने अपने धर्म के पहिये को पहले-पहल चलाया था। अन्य स्थानों में होते हए हएनत्संग वैशाली में पाया 1 इस राज्य का घेरा १३०० मील का था पर इसकी राजधानी. खण्डहर होगई थी । यहाँ का जलवायु अच्छा, लोग शुशील और सच्चे हैं। संघाराम अधिकाँश खण्डहर हैं उनमें बहुत कम सन्यासी हैं। हुएनत्संग विजयनों का लिच्छवियो से जुदा उल्लेख करता