२५६ दो अमर चीनी बौद्ध-भिन्तु है,परन्तु वास्तव में विजयन और लिच्छवी एक ही थे। बल्कि यों कहना चाहिये कि लिच्छवी लोग विजयनों की आठ, जातियों में से एक थे। हुएनत्संग फिर नेपाल गया। पर वहाँ के लोगों के विषय में उसकी अच्छी सम्मति नहीं है। वह कहता है कि वहाँ के लोग कुरुप, क्रोधी, कठोर, झूठे और विश्वास-घातक हैं। नेपाल से फिर यह वैशाली लौटा । और गंगा को पार करके वहाँ से मगध में पहुँचा जोकि उसकी पवित्र मण्डली से भरा हुआ था। उसने जो १२ पुस्तकें लिखी हैं उनमें से पूरी दो पुस्तकें उन कथाओं, श्यों तथा पवित्र चिह्नों के विपय में हैं जिन्हें उसने मगध में पाया था। मगध का राज्य एक हजार. मील के घेरे में था। दीवारों से चिरे नगरों की बजाय कस्बों की बस्ती ज्यादा थी। यह देश उप- जाऊ, नीचा और नम था इस कारण बस्ती ऊँची भूमि पर थी। बरसात में अब सारा देश पानी से भर जाता था, तब लोग नावों द्वारा बाहर आते-जाते थे। लोग खुशील, विद्या प्रेमी और बौद्ध थे। वहाँ ५० संघाराम और १०,००० अईत् थे। और दस देव मन्दिर थे। पाटलीपुत्र अब बिल्कुल उजड़ चुका था। कंवल नींव ही देख पड़ती थी। हुएनत्संग ने अशोक, महेन्द्र, नागार्जुन और अश्वघोप के विषय में तथा उन स्तूपों, बिहारों और स्थानों के विपय में जिन का सम्बन्ध बुद्ध के जीवन-चरित्र से है, बहुत कुछ वर्णन किया है।
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