पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२५

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बुद्ध और बौद्ध-धर्म २२ 21 उस भोजन गौतम ने एक बार फिर अपने शिष्यों को अपने धर्म का तत्त्व बताया और उसने उन्हें इसपर दृढ़ रहने की आज्ञा दी। अन्तिम वार फिर वह वैशाली गया और वहाँ से बलिग्राम, हस्तिग्राम, अम्बग्राम, जम्बुग्राम और भृगुग्राम गया और वहाँ से फिर वह पावा गया। वहाँ चेदी ने जो लोहार था, उसे भोजन के लिए निमन्त्रण दिया और उसे मीठे चावल, मीठी रोटियाँ तथा कुछ. सूखा सूअर का मांस खिलाया । गौतम दरिद्रों की वस्तुओं को कभी अस्वीकार नहीं करता था; परन्तु सूअर का माँस उसकी इच्छा के विरुद्ध था, लेकिन बुद्ध को भी खा लिया और तभी से उसे अतीसार का रोग हो गया। मृत्यु के समय उसे बहुत पीड़ा हुई; पर चूँकि गौतम आत्म- संयमी और सचेत था, इसे सहन किया । जब वह पावा से लौट रहा था, तो मार्ग में उसने एक नीच जाति के पुक्कस को बौद्ध बनाया। गौतम वहाँ से कुसीनगर पहुँचा जोकि कपिलवस्तु से ८० मील उत्तर में था और वहाँ उसने अपनी मृत्यु की तैयारी की। सन्ध्या को उसने अपने सब शिष्यों को एकत्रित किया और उसने उन्हें शान्तिपूर्वक समझाया कि चेदी ने जो उसे भोजन दिया था, उसके लिए वह दोषी नहीं है। वह तो उसने अनुग्रह और प्रेम के साथ दिया था, इससे वह जीवन की वृद्धि तथा सौभाग्य को प्राप्त होगा। उस रात्रि को जवकि गौतम मृत्यु-शय्या पर अन्तिम श्वास ले रहा था, एक दर्शनशास्त्र का प्रकाण्ड पण्डित सुभद् उससे कुछ प्रश्न पूछने आया लेकिन आनन्दं उसे गौतम के