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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२४

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२१ महान् बुद्ध तब उन्होंने कहा-'हे अम्बपाली ! हम लोगों से तू एक लाख रुपये ले ले और यह भोजन हमें करा लेने दे। तब उसने बतलाया कि यदि आप यह तमाम वैशाली और उसके आधीन के राज्य भी मुझे दे दें, तो भी मैं यह प्रतिष्ठा की दावत आपको न दूंगी। तब लिच्छवियों ने यह कहकर हाथ पटके कि इस अम्बपाली ने हम लोगों को हरा दिया और अब यह हम से बढ़ गई। वह अम्बपाली की बाड़ी में गये और वहाँ बुद्ध को देखा । उन्होंने बुद्ध को भोजन का निमन्त्रण दिया, लेकिन बुद्ध ने उत्तर दिया-हे लिच्छवियों! मैंने अम्बपाली का निमन्त्रण स्वीकार कर लिया है। जब दूसरे दिन गौतम और उसके शिष्य अम्बपाली के यहाँ भोजन करने गए, तो उसने उन्हें मीठे चावल और मीठी रोटियाँ खिलाई। जब बुद्ध भोजन करके तृप्त हुए, तब उन्होंने अम्बपाली को उपदेश दिया । बुद्ध का उपदेश सुनकर अम्बपाली ने अपना वह विशाल महल और अतुल सम्पत्ति बौद्ध-संघ के लिए दे दी और खुद बौद्ध भिक्षुणी हो गई। अम्बपाली की बाड़ी से गौतम पावा गए । वहाँ उसने अपनी मृत्यु को निकट आते देखा, तब उसने आनन्द से कहा-"मैं बहुत वृद्ध और कमजोर हो गया हूँ। अब मेरी मृत्यु के दिन नजदीक आ गए हैं। इसलिए, हे आनन्द ! तुम खुद अपने लिए प्रकाश हो और अपने लिए रक्षक हो । मेरे बाद तुम किसी दूसरे बाहरी रक्षक की शरण न लेना, रक्षक की मॉति सत्य में घढ़ रहना ।" ,