. . २६३ दो अमर चीनी बौद्ध भिक्षु आजकल के भागलपुर के निकट थी । इस राज्य का घेरा ८०० मील और भूमि समतल तथा उपजाऊ थी। राजधानी की दीवारें दस फीट ऊँची और एक ऊँचे चबूतरे पर थीं। अन्य कई स्थानों में होता हुआ हुएनत्संग पुन्द्रवा पुन्द्रवर्धन में पाया, जो आजकल का उत्तरी बङ्गाल है। यह राज्य ८०० मील के घेरे में था, उसमें घनी बस्ती थी। वस्ती के बीच-बीच में बारा, बगीचे, लता, गुल्म, तालाब आदि थे, भूमि चौरस और उपजाऊ थी। यहाँ २० महाराम और ३०० पुजारी थे, भिन्न-भिन्न सम्प्रदायों के लगभग १०० देव-मन्दिर थे। यहाँ नंगे निम्रन्थ लोग सबसे अधिक थे। पूर्व की ओर ब्रह्मपुत्र नदी के उस पार कामरूप का प्रबल राज्य था, जिसका घेरा १००० मील था। इस राज्य में आधुनिक आसाम, मनीपुर, कवार, मैमनसिंह और सिलहट सत्र सम्मिलित थे । यहाँ की भूमि उपजाऊ थी। नारियल और दूसरे फल बहुता- यत से होते थे । नदियों या बाँध का जल स्त्रों के चारों ओर बहता था । यहाँ का जलवायु कोमल और लोग ईमानदार थे। कुछ नाटे और पीले रंग के होते थे, पर वे क्रोधी होते थे। उनकी भापा मध्य भारतवासियों से भिन्न थी। उन लोगों की स्मरणशक्ति तेज थी और वे लोग पढ़ने में दत्तचित थे। वे लोग बौद्ध-धर्म को नहीं मानते थे, व देवों की पूजा करते थे। यही लगभग १०० देव मन्दिर थे, वहाँ एक भी बौद्ध-संघाराम नहीं था। राजा यहाँ का ब्रामण था और उसका नाम भास्कर वर्मन था और उसे कुमार ,
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