बुद्ध और बौद्ध-धर्म २६२ डा० फर्ग्युसन साहब का यह कथन ठीक है कि जिस प्रकार मध्यमकाल में फ्रान्स के लिये लनी और क्लेखों थे, वैसे ही मध्य- काल में भारत में सच्ची विद्या का केन्द्र नालन्द था। वहीं से अन्य देशों में विद्या का प्रचार होता था। दोनों धर्मों की सब बातों में जैसी अद्भुत समानता है, वैसे ही दोनों धर्मों की सब रीतियों के अविष्कार और व्यवहार में बौद्ध लोग ईसाइयों से पाँच शताब्दि पहले रहे। नालन्द का बड़ा बिहार जहाँ पर कि विश्वविद्यालय था, उसी के योग्य था। शक्रादित्य, बुद्धगुप्त, तथागत गुप्त और बालादित्य इन चार महान राजाओं ने मिलकर इस विश्वविख्यात विशाल इमारत को बनवाया था। इस इमारत के बन जाने पर इसमें एक बड़ी भारी सभा हुई, जिसमें कि दो-दो हजार मील की दूरी से हजारों आदमी एकत्रित हुए थे। इसके बाद कई राजाओं ने इसके आस-पास कई विहार बनवाये, जिनमें बालादित्य का बनवाया हुआ विहार सबसे सुन्दर था । वह तीन सौ फीट ऊँचा था और सुन्दरता, बड़ाई और बुद्ध की स्थापित मूर्ति में वह बोधि वृक्ष के नीचे के बड़े विहार की समानता रखता था ।" मगध से हुएनत्संग हिरण्य पर्वत के राज्य में पाया, जिसे जनरल कनिंघम ने मुंगेर निश्चित किया है। इस राज्य का घेरा ६०० मील और यहाँ की जमीन बहुत उपजाऊ थी । राजधानी के निकट मुंगेर के गरम सोते थे, जिनमें से बहुत-सा धुआँ और भाप निकलती थी। चम्पा जो अंग के पूर्वी-विहार की राजधानी थी,
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