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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२५७

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बुद्ध और बौद्ध धर्म २७. द्राविड़ राज्य के दक्षिण में मलयकूट का राज्य था, जिसे डा. वर्नेल ने कावेरी नदी के डेल्टा से मिलाया है। यहाँ के लोग काले, वीर, जोशीले, विद्याव्यसनी और व्यापार कुशल थे। इस देश के दक्षिण में मलय पर्वत के दक्षिणी भाग थे, जहाँ कपूर और चन्दन होता था। इस पर्वत-श्रणी के पूर्व में पोटलक पर्वत था, जहाँ बुद्ध महात्मा अवलोकितेश्वर ने, जिनकी पूजा चीन, जापान और सिब्बत में उत्तरी वौद्ध करते हैं कुछ समय तक निवास किया था। हुएनत्संग यद्यपि लंका में नहीं गया, परन्तु उसने वहाँ का सब वृत्तान्त लिखा है। उसने महेन्द्र के विषय में और अन्य कई वृत्तान्त और दन्तकथाएँ तथा कथाएँ लिखी हैं। वह लिखता है- "लंका में १०० मठ और २०,००० पुजारी थे । वहाँ पर रन और मोती अधिक पाये जाते हैं।" द्राविड़ों से उत्तर की ओर यात्रा करता हुआ हुएनत्संग कोकन में आया, जो १०,००० मील के घेरे में था । यहाँ के लोग यद्यपि काले, क्रोधी और जंगली थे, पर वे विद्या का सम्मान करते थे। कोकन के उत्तर-पश्चिम एक भयानक जंगल के पार १००० मील के घेरे में महाराष्ट्र का बड़ा देश था । यहाँ के लोग बड़े वीर सच्चे, पर कठोर और बदला लेने वाले थे । वे उपकृत होकर गुलाम और अपमानित होकर जान के गाहक हो जाते थे। निर्वल की सहायता में वे अपनी जान तक लड़ा देते थे। अपने शत्रु को वह पहले ही सूचना दे देते और फिर दोनों शस्त्रों से सुसज्जित होकर लड़ते थे। अगर कोई सेनापति युद्ध में हार जाय तो उसे वे