दो अमर चीनी बोद्ध-मिच दण्ड न देकर स्त्रियों का कपड़ा देकर निकाल देते हैं, जिससे वह स्वयं अपनी मृत्यु का उपाय करं। इनका राजा क्षत्रिय है, उसका नाम पुलकेशी था। उन दिनों पुलकेशी की कार्य कुशलता और न्वाय-शीलता की धाक चौतरफ थी। हुपनत्संग के समय में यद्यपि महाराज शीलादित्य ( द्वितीय ) ने पूर्व से लेकर पश्चिम तक की जातियों को विजित किया था, पर एक इसी जाति ने उनकी प्राधीनता स्त्रीकार न की । शीलादित्य ने सब दिशाओं से उत्तम- उत्तम सैनिकों को एकत्रित करके एक प्रवल सना बनाई और इस वीर जाति को अपने आधीन करने के लिये उस पर आक्रमण किया। पर यह जाति उसके आधीन नहीं हुई । इस युद्ध पुल- केशी ने शीलादित्य को हराया और मानी मरहटों की स्वतन्त्रता को कायम रखा । उसी प्रकार हजार वर्ष उपरान्त पुलकेशी के एक उत्तराधिकारी ने उत्तरी भारत के सम्राट औरंगजैव का सामना किया। और मरहठों को न्योई हुई स्वतन्त्रता और प्रबलता को पुनरुनावित किया । जब मुग़लों और राजपूतों का पतन होगया, तब भी ये ही मरहठे अंग्रजों से लड़े थे। महाराष्ट्र देश की पूर्वी सीमा पर एक बड़े भारी पर्वत पर बने हुए विशाल संघाराम का वर्णन करते हुए हुएनत्संग ने लिखा है- "यह संघाराम एक अन्धकारमय घाटी में बना हुआ है, इसके कमर और दालान चट्टानों के सामनं फैले हुए हैं, प्रत्येक चट्टान के पीछे चट्टान और आगे घाटी है।" ये प्रसिद्ध एजेण्टा की गुफायें हैं। वह फिर लिखता है-"इसके अतिरिक्त यहाँ एक सौ फीट -
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