बुद्ध और बौद्ध-धर्म २७६ करा दिया। इसके बाद बहुत काल तक यह स्थान खण्डहर के रूप में पड़ा रहा । अशोक ने जहाँ पर यह मन्दिर बनवाया, वहाँ एक महान् ग्राम था, जोकि टकर राज्य की अमलदारी में था। बख्तियार खिलजी के आक्रमण के बाद यद्यपि यह स्थान उजाड़ हो गया था, परन्तु बौद्ध लोग तो बराबर इसके दर्शन के लिये आते ही रहते थे । फाहियान सन जैसे प्रमुख यात्रियों ने भी इसके दर्शन किये थे। सन् १७२७ में महमूदशाह ने इस मन्दिर के तत्कालीन महन्त को दो गाँव इनायत किये, जो कि मन्दिर के नजदीक थे । और एक सनद भी लिख दी थी। १६ वीं शताब्दि के अन्त में ब्रह्मा के राजा मिन डूनमिन ने बहुत-से रुपये खर्च करके मन्दिर की मरम्मत करवाई और उसको अपने अधिकार में ले लिया । भूतपूर्व महन्त ने अपने अधिकार उन्हें दे दिये और फिर से वहाँ बुद्ध पुजारी रहने लगे। लेकिन पीछे जब भारत-सरकार और बर्मा के राजा में लड़ाई हुई और थीवा पकड़ा गया तथा बर्मा-सरकार के कब्जे में आ गया, तब बौद्ध-मन्दिर पर भी सरकार ने कब्जा कर लिया। इसके बाद बराबर यह कोशिश की जाती रही कि इस मन्दिर की मरम्मत कराई जाय । प्रियसन साहब गया के मजिस्ट्रेट ने भी सरकार को मरम्मत के लिये लिखा था। जब वर्मा के राजा ने बौद्ध-मन्दिर की मरम्मत शुरू कराई तो प्राचीन बोधि वृक्ष के नीचे से मिट्टी हटाने से वह गिर गया। उस
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