बुद और बौद्ध-धर्म २६. समय में नालन्दा महा-विहार की स्थापना होना सर्वथा स्वाभा- विक है। यद्यपि ये राजा हिन्दु थे, तथापि इन्होंने अपने विद्या-प्रेम तथा धार्मिक सहिष्णुता से प्रेरित होकर महा-बिहार की स्थापना की और उसकी नन्नति करने में निरन्तर तत्पर रहे। कुमारगुप्त (प्रथम ) का एक शिलालेख मिनु बुद्धभिन्न द्वारा बुद्ध की एक मूर्ति के निर्माण का संस्मारक है । ऐसी दशा में यह बात सन्देहातीत जान पड़ती है कि इन पराक्रमी और विद्या-प्रेमी राजाओं द्वारा "नालन्दा महा-बिहार का उत्तरोत्तर अभ्युदय होता गया। (२) हर्षवर्धन वालादित्य (नरसिंह गुप्त) के पुत्र वन (कुमारगुप्त द्वितीय) के बाद नालन्दा महा-बिहार के संरक्षकों में हुएनत्संग ने मध्यभारत के जिस राजा का उल्लेख किया है, वह सम्भवतः कन्नौज के हर्ष- वर्धन ही थे। श्री हर्षवर्धन प्राचीन भारतवर्ष के एक प्रतिभाशाली एवं शक्ति सम्पन्न नरेश थे। उनके राजत्वकाल में, जो ६०६ से ६४७ ईसवी तक माना जाता है, कन्नौज सर्वथा उन्नति के शिखर पर पहुंचा। उस समय पाटलिपुत्र का जो बौद्ध-काल से लेकर गुप्त-शासन पर्यन्त राजनीतिक तथा धार्मिक ज्ञान का केन्द्र माना जाता था, सूर्य अस्त हो चुका था । इसलिये, कन्नौज का कोई प्रतिद्वन्दी न होने के कारण वही नगर उत्तरीय भारत में सर्वश्रेष्ठ तथा सुरम्य माना जाने लगा। किन्तु हर्ष के शासन का महत्व केवल इतना ही
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