पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२७६

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.२८६ नालन्दा विश्वविद्यालय नरसिंह गुप्त " नाम को गुप्त-वंशीय प्रसिद्ध राजाओं का नामन्तर सिद्ध किया है उनका समीकरण इस प्रकार है।। शक्रादित्य कुमारगुप्त (प्रथम) बुद्धगुप्त-राज स्कंदगुप्त तथागतगुप्त राज पुरगुप्त बालादित्य-राज (१) गुप्तवंश यद्यपि विद्वानों ने अभी इस समीकरण पर विशेष विचार नहीं किया है, तथापि इसकी सत्यता पर हमें सन्देहानहीं । कम-से- कम यह तो सब को मानना पड़ेगा कि बालादित्य राजा और कोई नहीं नरसिंह गुप्त ही थे । नरसिंह गुप्त की मुद्राओं में बालादित्यकी उपाधि है। इसी तरह शक्रादित्य का प्रथम कुमार गुप्त होना सर्वथा सम्भव है। कुमार गुप्त की मुद्राओं पर महेन्द्रादित्य की उपाधि अक्षित है। "महेन्द्र और शक का अर्थ एक ही है। अतएव शक्रादित्य सम्भवतः कुमारगुप्त (प्रथम) के सिवा और कोई न थे। आचार्य वामन के "काव्यालंकार सूत्रवृत्ति" में कुमार गुप्त के विद्यानुराग का उल्लेख है । उनके समय में गुप्तों का पराक्रम बड़ा प्रखर था। अतएव उनका नालन्दा महा-बिहार जैसे विद्या केन्द्र का प्रथम स्थापक होना कोई आश्चर्य की बात नहीं। उनके बाद उनके वंशज राजा मालन्दा की श्रीवृद्धि और संरक्षण में दत्त- चित्त रहे । गुप्तवंशी राजाओं का समय भारतवर्ष का स्वर्ण युग कहा जाता है । उस समय देश बड़ा उन्नत्त और समृद्ध था। ऐसे