बुद्ध और बौद्ध-धर्म गाँवों के २०० गृहस्थ भी कईसौ मन चावल और कईसौ मन दूध तथा मक्खन प्रति दिन दान करते थे। विद्यालय की ओर से विद्यार्थियों के अन्न, वस्त्र, शय्या और औषधि का समुचित प्रबन्ध था। हुएनत्संग जब तक नालन्दा में रहा, तब तक उसे १२० जंकीर, २० सुपारी, आधा छटाँक कपूर और लगभग ॥ छटाँक महाशील चावल मिलता रहा। इसके अतिरिक्त उसे प्रति मास लगभग ३-४ छटाँक तेल यथेष्ट मक्खन और अन्य आवश्यक वस्तुयें भी मिलती थीं। इत्सिंग के समय में विद्यालय के अधिकार में २०० गाँव आ चुके थे । मालूम होता है हुएनत्संग के बाद और इत्सिंग के समय तक सौ और गाँवों का कर विद्यालय के खर्च के लिये मिल चुका था। ये गाँव राजाओं की कई पीढ़ियों के दान के फल थे। आगे चलकर पालवंशी राजाओं के समय में भी इस तरह की सहायता और दान की प्रणाली जारी रही। श्री हीरानन्द शास्त्री को नालन्दा में श्री देव- पाल देव का एक ताम्रपत्र मिला था। उसमें देवपाल द्वारा महा- विहार के संचालन के एक और चतुर्दिक से आये हुए भिक्षुकों के सेवा-सत्कार तथा धर्म-ग्रन्थों के लिखने के लिये "राजगृहप और "गया जिले के पाँच गाँवों के दान का उल्लेख है। इसी प्रकार अन्त तक एक के बाद दूसरे राजा से सहायता मिलती गई। इसी- लिये यहाँ के विद्यार्थी, जीवन की आवश्यकताओं की चिन्ता से मुक्त होकर, निःशुल्क शिक्षा पाते हुए निरन्तर ज्ञानार्जन में दत्त- चित्त रहते थे।
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