पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२९०

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३०३ नालन्दा विश्व-सिद्यालय पुस्तकालय विद्यालय में एक बहुत विशाल पुस्तकालय भी था। इसके लिये यहां के "धम्मगंज नामक स्थान में तीन भव्य भवन बने हुए थे, रमसागर, रबदधि और रनरंजक । इनमें रत्नदधि नौ खण्ड का था। इन खण्डों में असंख्य पुस्तकें सजी रहती थीं। पुस्तकालय में बौद्ध-धर्म ग्रन्थों की प्रतिलिपि तैयार करने के लिये अनेक भिक्षु नियुक्त थे । दूर-दूर देशों के विद्वान भी श्राकर यहां के ग्रन्थों की प्रतिलिपि ले जाया करते थे। हुएनत्संग यहां दो वर्ष रह कर ६५७ प्रन्थों की प्रतिलिपि तैयार करके अपने साथ ले गया था। इसिंग भी अपने साथ कोई ४०० पुस्तकों की प्रतिलिपि ले गया। नालन्दा के हस्तलिपिकार अपनी तैयार की हुई हस्तलिपि में अपने नाम के साथ-साथ तत्कालीन राजा के राज्यकाल का भी उल्लेख कर देते थे। यही कारण है कि नालन्दा की जो हस्त-लिखित पुस्तकें आज कल यत्र-तत्र मिल जाती हैं, उनके समय का बोध सुगमता से हो जाता है। ऐसे मिल जाने वाले ग्रन्थों में कितने ही पाल-कालीन होते हैं। इससे मालूम होता है कि उस समय बहुंत से ग्रन्थों की प्रतिलिपियों तैयार की गई थीं। नालन्दा के कई हस्तलिखित ग्रंथ आज केम्ब्रिज और लन्दन के पुस्तकालयों में सुरक्षित हैं। महाविद्यालय के कुछ प्रसिद्ध विद्वान नालन्दा-महाबिहार में विद्या के सभी साधन विद्यमान थे। इसीलिये यहाँ से एक-से-एक दिग्गज विद्वान निकलते थे, जो केवल