बुद्ध और बौद्ध-धर्म - अब देखिए, बुद्ध के दुःख विश्लेषण में जो जरा, जन्म, मृत्यु और व्याधि बताए गए हैं, वे भी आर्य सिद्धांतों के आधार पर हैं 'आर्य सत्य चतुष्टय' नाम से बुद्ध ने अपने धर्म के ४ मूल सूत्र निर्माण किए हैं। यह पद्धति भी योग-शास्त्र या चिकित्सा- शाख से ली हुई प्रतीत होती है। २--मध्यम पथ । बुद्ध-देव का दूसरा सिद्धान्त 'मध्यम पथ', 'मझिमा-परिपदा' है । उनका कथन है कि दो अंतिम कोटियाँ हैं। एक 'कामेपु काम सुखल्लिकानु योग' अर्थात् विषयों के उपभोग में लीन होकर रहना; और, दुसरा 'अत्त किल मथानु योग'-अर्थात् कठिन साधनाओं के द्वारा श्रात्मा को लांत करके नियुक्त रहना । (महावग्ग १-६-१७) इन दोनों कोटियों को परित्याग करके मध्यम-मार्ग का अवलंब करना। न भोग-विलास में ही सर्वथा आसक्त रहना और न कठोर अनिद्रा उपवासादि से आत्मा ही को क्लेश देना । ३-अनित्य, दुःख और अनात्मा । बुद्ध का एक सिद्धान्त यह भी है कि वे संसार की दृश्यमान वस्तुओं को अनित्य, दुःख और अनात्मा कहते हैं । इस विषय में उनका उपदेश इस प्रकार है-भिक्षु जनों को संबोधन करके वे कहते हैं । (महावग्ग १-६-४२) भिक्षुगण ! तुम क्या समझते हो ? रूप नित्य है या अनित्य । "भगवन ! वह अनित्य है ।"
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