पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/२९१

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बुद और वौद्ध-धर्म ३०४ विदेश में हो नहीं सुदूर विदेशों में भी जाकर ज्ञान का प्रचार करते थे। हुएनत्संग ने कुछ उद्धट पंडितों का नामोल्लेख किया है। लिखा है कि प्रत्येक विद्वान ने कोई दस-इस पुस्तकें और टीकायें बनाई थी, जो चारों ओर देश में प्रचलित हुई और अब तक प्रमिद्ध हैं। अपनी विद्वत्ता से ज्ञानहीन संसारी मनुष्यों को प्रबुद्ध करने वाले धर्मपाल और चन्द्रपाल अपने श्रेष्ठ उपदेश की धारा दूर तक प्रवाहित करने वाले गुणमति, और स्थिरमति, सुस्पष्ट युक्तियों वाले प्रभामित्र,विशुद्ध वाग्मी जिनमित्र,आदर्श चरित्रवान और बुद्धिमान ज्ञानचन्द्र, शीघ्रबुद्ध तथा शीलभद्र महाविहार के शिक्षकों में मान्य प्रधान थे। इनमें जिनमित्र "भूलसर्वास्तिवाद-निकाय के प्रणेता थे। हुएनत्संग के समय में शोलभद्र ही विद्यालय के प्रधानाचार्य थे। वे बंगाल के राजकुमार थे, पर संसार से विरक्त हो, धर्म और विद्या की उपासना में लग गये थे। सभी सूत्रों और शास्त्रों पर उनका अखण्ड अधिकार था । हुएनत्संग उन्हीं का शिष्य रहा! इत्सिंग ने उनके अतिरिक्त नागार्जुन, देव, अश्वघोप, वमुबन्धु, दिङ्नाग, कमलशील, रत्नसिंह प्रभृति अन्य कई विद्वानों का उल्लेख किया है। नवीं ईस्वी सदी के प्रारम्भ में नालन्दा के विद्वान "शान्तिरक्षित, भोट दंश (तिब्बत) के राजा द्वारा निमंत्रित होकर वहाँ गये थे। उन्हीं के द्वारा वहाँ के आधुनिक "लामा मत, का वीज-वपन हुआ। उन्हें वहाँ 'आचार्यबोधिसत्व' की उपाधि मिली थी । उनके बाद नालन्दा से “कमलशील निमन्त्रित होकर वहाँ गये और अभिधर्म-शाखा के अध्यक्ष बनाये गये । हमें पालों के ,