बुद्ध और बौद्ध-धर्म , हम सुना चुके । यह एक आदर्श विद्यालय था। भारतीय शिक्षा के सभी उच्च आदर्श उसमें वर्तमान थे। कोलाहलपूर्ण संसार से दूर निर्मल जलाशयों और सुविस्तृत अाम्रकाननों से सुशोभित शान्त एवं सात्विक तपोवन में, इसकी स्थापना हुई थी। तपोवन और तपोमय जीवन, यही इसकी महत्ता का रहस्य था। इसके भव्य भवनों, मनोहर मन्दिरों और सुचारु चैत्यादिकों के देखने और इसके विश्वव्यापी पवित्र प्रभाव का चिन्तन करने से हृदय में अनेक कोमल और किशोर भावनायें जाग उठती हैं। कई सौ वर्षो का इतिहास आँखों के सामने नाच उठता है। आगरे के प्रसिद्ध 'ताजमहल' पर अनेक कवियों ने अनूठी उक्तियाँ कही हैं। पर नालन्दा के भन्न, किन्तु दिव्य विहारों और संघारामों पर उनका हृदय नहीं पसीजा । नालन्दा अनेक तपस्वी महात्माओं के यश-सौरभसे सुरभित है। इसमें हृत्तंत्री झंकृत करने की पर्याप्त सामग्री है। इस तीर्थ-भृमि का प्रत्येक रेणु-क्रम भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति का दर्पण है । इसके दर्शन से ऐसा भासित होता है, मानो प्राचीन भग्न-मन्दिरों से बौद्ध-भिक्षुकों की पवित्र आत्मायें संसार के कल्याण के निमित्त दिव्य ज्ञान का आलोक लिये हुए निकल रही हैं । यहाँ का सारा वायु-मण्डल इस पवित्र मन्त्र से गूंजता हुआ-सा प्रतीत होता है- "धर्म शरणं गच्छामि, बुद्धं शरणं गच्छामि, संवं शरणं गच्छामि।
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