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पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/३००

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बौद्ध-धर्म का अस्त यौद्ध-धर्म के लोप की कथा एक बहुत ही आश्चर्यजनक है। यह घात समझ में नहीं पाती कि जो बौद्ध-धर्म ४०० वर्षों के अन्दर लगभग सारे एशिया के.अन्दर फैल गया, वह एकाएक कैसे लोप हो गयः । परन्तु वास्तव में देखा जाय तो हमें मालूम होगा कि बौद्ध-धर्म का लोप नहीं हुआ, बल्कि उसका रूप बदल गया । यह तो हमको मानना ही पड़ेगा कि जिस समय चौद्ध धर्म लगभग समस्त एशिया में फैल गया था, उस समय भी हिन्दू-धर्म नष्ट नहीं हुंधा था। जहाँ-जहाँ बौद्धों के मठ-मूर्ति आदि थे, वहाँ हिन्दुओं के भी देवी-देवताओं की पूजा और मन्दिर निर्माण हो रहे थे। पुष्पमित्र का अश्वमेध यज्ञ, वैशेपिकों के यज्ञ और उस समय के घने हुए मन्दिर-स्तूप आदि इसके ज्वलन्त प्रमाण हैं। बुद्ध ने जिस समय अहिंसा धर्म चलाया, उस समय हिन्दुओं बहुत पतित हो गया था । यज्ञ का बड़ा भारी जोर था। यज्ञ को ही वह सर्वोत्कृष्ट धर्म मानते थे । वास्तविक धर्म से वह विमुख थे । सर्वसाधारण ब्राह्मण और क्षत्रियों के अत्याचारों से लोग पीड़ित थे। छोटी जातियाँ बिल्कुल कुचली हुई थीं। उनके साथ बड़ा बुरा व्यवहार किया जाता था। ऐसी अवस्था में बुद्ध ने जो एकाएक अहिंसा की आवाज का धर्म