बुद्ध और बौद्ध-धर्म ३२ आठ प्रकार के मार्गों का वर्णन पीछे आ चुका है। बुद्ध का कथन है कि इस प्रकार आत्मोन्नति से मनुष्य दशों बन्धनोंसे मुक्त होता है और अन्तमें उसे निर्माण की प्राप्ति होती है। बुद्ध कहता है-जिसने अपनी यात्रा समाप्त कर ली है, जिसने शोक को छोड़ दिया है, जिसने अपने-आपको सब तरफ से स्वतंत्र बना लिया है, जिसने अपने सब बन्धनों को तोड़ डाला है उसके लिए कोई भी दुःख नहीं है--उसके लिए कोई बन्धन नहीं है । वे लोग अपने विचारों को भलीभाँति संग्रह करक बिदा होते हैं। वे अपने घर में सुखी नहीं रहते; जिस प्रकार वे राजहंस जिन्होंने अपनी झील को छोड़ दिया है, इसी प्रकार वह लोग अपने घर को त्याग देते हैं। जो ज्ञान के द्वारा स्वतन्त्र हो गया है उसके विचार शान्त हैं, उसके वचन और कर्म शान्त हैं और वह मनुष्य शान्त है। बुद्ध का अभिप्राय यह है कि मन की वह पापी अवस्था, जीवन और उसके सुखों की लालसा के नाश होने से है, जिससे नया जन्म होता है। निर्वाण से गौतम का यह अभिप्राय है कि वह जीवन ही में प्राप्त हो जाता है। उसका विश्वास था कि उसे उसने जीवन ही में प्राप्त कर लिया था। और वह उस दशा को निर्वाण कहता है कि जिसमें उसने मन की पापरहित शान्त अवस्था, अभिलाषाओं और क्षोभ से मुक्तिपूर्ण शान्ति तथा भलाई और ज्ञान की अवस्था प्राप्त कर ली थी।
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