बुद्ध के धार्मिक और दार्शनिक सिद्धान्त . मृत्यु के दिन उसने अपने सिद्धान्तों को इस प्रकार गिनाया- (१) चारों सत्य ध्यान (२) पाप के विरुद्ध ४ प्रयत्न (३) महात्मा होने के ४ मार्ग (४) पांच धर्म शक्तियाँ (५) पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ (६) सात प्रकार की बुद्धि (७) आठ प्रकार के उत्तम मार्ग (महापरिनिव्वान सुत्त ३,६५) बौद्ध सिद्धान्त के चार सत्य-देह, ज्ञान, विचार और कारण के विषय में हैं। चारों पापों के विरुद्ध जो प्रयत्नों का उल्लेख बौद्ध सिद्धान्तों में है, वह पापों को रोकने और भलाई को बढ़ाने के सम्बन्ध में है। उन चारों प्रयत्नों से यह अभिप्राय है कि पापी अपने जीवन में अधिक भलाई करे और अधिक सच्चा हो । इच्छा, प्रयत्न, तैयारी और खोज ये महात्मा बनने के चार कारण हैं । इन्हें 'इद्धि' कहते हैं। उत्तरकालीन बौद्ध 'इद्धि'का अर्थ अमानुषिक शक्तियाँ मानते हैं, परन्तु गौतम का अभिप्राय उन शक्तियों से था कि जिनका बहुत समय तक निरन्तर अभ्यास करने से मन इस देह पर पूरा अधिकार प्राप्त कर लेता है। आत्मीय-ज्ञान की पाँच शक्तियाँ ये हैं-विश्वास, पराक्रम, विचार, ध्यान और बुद्धि। सात प्रकार की बद्धि यह है-शक्ति, विचार, ध्यान, खोज, आनन्द, आराम और शान्ति ।
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