पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/४५

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बुद्ध की प्राचार-सम्बन्धी प्राज्ञाएं धुद्ध ने जिस पवित्रता, त्याग और सदाचार के आधार पर अपने सिद्धान्तों का प्रचार किया था, और जिस सफलता से वह महान् गुरु पृथ्वी-भर में इतनी शीघ्रता से पूज्य बन गया; उसकी आचार-सम्बन्धी आज्ञाएं कितनी महान् थीं, इस बात पर बिना दृष्टि डाले हुए हम आगे नहीं बढ़ सकते। हम उनमें से कुछ आज्ञाओं का उल्लेख करेंगे जो वास्तव में बौद्ध-धर्म की शोभा है। गृहस्थों के सम्बन्ध में वह कहता है- "गृहस्थों का भी कार्य मैं तुमसे कहूँगा कि श्रावक किस प्रकार आत्मोन्नति के लिए कार्य करे; क्योंकि भिक्षुओं का पूरा धर्म उन लोगों से पालन नहीं किया जा सकता जो सांसारिक कार्यों में लगे रहते हैं।" "उसे न किसी जीव को मारना और न मरवाना ही चाहिए। यदि दूसरे लोग किसी जीव को मारें, तो उसे सराहना नहीं चाहिए। उसे सब जन्तुओं के, चाहे वह बलवान हों या निर्वल-- मारने का विरोध करना चाहिए।" "श्रावक को वह चीज़ कभी नहीं लेनी चाहिए, जोकि दसरे