पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/५४

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५१ बुद्ध की आचार-सम्बन्धी आज्ञाए का राजा था; जैसा कि बहुधा हुआ करता है धनाढ्य राजा ने इस निर्बल राजा का देश और धन छीन लिया। दीर्घकीर्ति अपनी रानी के साथ बनारस भाग गया, और वहाँ सन्यासी के भेस में एक कुम्हार के यहाँ रहने लगा। वहाँ उसकी रानी के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम दीर्घायु रक्खा गया। कुछ काल में वह लड़का बड़ा होगया । इस बीच में राजा ब्रह्मदत्त ने सुना कि उसका शत्रु उसके नगर में भेस बदल कर रहता है। उसने आज्ञा दी कि वह उसके सामने लाया जाय और निर्दयता से मार डाला जाय । दीर्घकीर्ति का पुत्र दीर्घायु उस समय बनारस के बाहर रहता था; परन्तु अपने पिता के मारे जाने की खबर सुनकर वह नगर में आगया था। मरते हुए राजा ने अपने पुत्र की ओर देखा और अमानुपिक ज्ञमा से अपने पुत्र को उपदेश किया- मेरे प्यारे दीर्घायु ! घृणा, घृणा करने से शान्त नहीं होती, घृणा प्रीति से शान्त होती है । हे भिक्षओ ! तब युवा दीर्घायु वन में चला गया और वहाँ वह जी-भरकर रोया । तब वह अपने विचार दृढ़ करके नगर को लौटा और राजा के तबेले में एक हाथी के सिखलाने वाले की अध्यक्षता में नौकरी करली । वह सबेरै उठा और सुन्दर स्वर से गाने और बीन बजाने लगा। उसका स्वर इतना मधुर था कि राजा ने इस बात की खोज की कि इतने सवेरे तवेले में यह कौन गा रहा है ? तब इस युवा को लोग राजा के पास गए। उसने राजा को प्रसन्न किया और राजा ने उसे अपने पास नौकर रख लिया।