५४ , बुद्ध और बौद्ध धर्म गौतम ने मातङ्ग नामक एक चाण्डाल की कथा कही है, जिसने अपने अच्छे कर्मों के द्वारा सबसे अधिक प्रसिद्धि पाई, जो देवताओं के विमान पर बैठा और ब्रह्मा के लोक में चला गया। अतएव जन्म से कोई मनुष्य, न तो चाण्डाल होता है और न ब्राह्मण ही। केवल कमों ही से चाण्डाल और कर्म ही से वह ब्राह्मण होता है। सूत्रनिपात के श्रामगन्धसूत्र में गौतम काश्यप ब्राह्मण से कहता है-जीव को नष्ट करना, हिंसा करना, काटना, बाँधना, चोरी करना, झूठ बोलना, छल करना, व्यभिचार करना, निन्दा करना, कपट करना, नशा करना, धोखा देना, निर्दयता, घमण्ड, बुरा मन और बुरा कार्य-ये सब मनुष्य को अपवित्र करते हैं। मछली माँस न खाने से, नंगा रहने से, सिर मुंडाने से, गुथे हुए बाल रखने से, भभूत लगाने से, रूखा वख धारण करने से, हवन करने से, तपस्या करने से, भजन करने से और वलिदान और यज्ञ करने से वह पवित्र नहीं हो सकता। समस्त धर्मपद में ४२३, सद्व्यवहार की आज्ञाएं हैं, जो उत्त- मता और सद्व्यवहार की रष्टि से इस भांति की अन्य आज्ञाओं के संग्रहों से बढ़कर हैं, जो किसी समय या किसी देश में किये गये हैं। और बौद्धों की धर्म-पुस्तकों में जो कथाएं, कहावतें, उपमाएं और आज्ञाएं हैं, उनका संग्रह करने से एक बड़ी अच्छी पुस्तक वन जाय । उनमें से कुछ उद्धृत वाक्यों को देकर इस अध्याय को पूर्ण करते हैं।
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