पृष्ठ:बुद्ध और बौद्ध धर्म.djvu/५८

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५५ युद्ध की आचार-सम्बन्धी अाशाएं सब मनुष्य दण्ड से डरते हैं, सब मनुष्य मृत्यु से भयभीत होते हैं। स्मरण रक्खो, तुम भी उन्हीं के समान हो, अतःएव हिंसा मत करो और न दूसरे से हिंसा करायो । दूसरों का दोष सहज में दिखलाई देता है, परन्तु अपना दोष दिखलाई देना कठिन है। मनुष्य अपने पड़ोसी के दोषों को भूसी की भाँति पछारता है, परन्तु अपने दोषों को वह इस भांति छिपाता है; जैसे कोई छल करनेवाला जुआरी से बुरेवाले को छिपाता है। यह उत्तम प्रकार की शिक्षा की उन्नति कहलाती है, कि यदि कोई अपने पापों को पाप की भाँति देखकर उनका सुधार करे और भविष्य में उनको न करे। इस प्रकार जो मनुष्य अलग-अलग हैं,उन्हें वह एक करता है। जो मित्र हैं, उन्हें उत्साहित करता है । वह मेल करनेवाला है, मेल का चाहने वाला है, मेल के लिए उत्सुक है, जो ऐसे कार्यों को करता है जिससे मेल हो।