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बुद्ध और बौद्ध धर्म
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नंद काश्यप और गम्या काश्यप नामक तीन जटिल डरवेल नामक ग्राम में रहते थे। वे क्रम से ३००-४०० और ५०० जटिलों के गुरु थे । जटिल उन्हें कहते हैं, जो डाढ़ी-मूंछ नहीं कटवाते और बालों को बढ़ाये रखते हैं, जिन्हें रवानस सम्प्रदाय के भी कहते हैं। और राजगृही में एक संजय नाम के सन्यासी २५० सन्या- सियों के साथ रहते थे। इससे यह ज्ञात होता है कि बुद्ध के समय में भी अनेकों सन्यासी व संघ थे, पर उन सबसे बढ़ा-चढ़ा और बड़ा बौद्ध-संघ हुआ। किसी ने भी बौद्ध-संघ के बराबर काम नहीं किया। बुद्ध ने ही एक ऐसा संघ उत्पन्न किया कि जो समस्त एशिया में शीघ्र ही फैल गया।

बद्ध उन स्त्री-पुरुषों को जिन्हें कि संसार से विरक्ति हो गई हो, बिना किसी जाति-भेद-भाव के अपने संघ में शामिल कर लेते थे । बुद्ध के पूर्व शूद्र लोग सन्यासी और वानप्रस्थी नहीं हो सकते थे; लेकिन बुद्ध ने जाति-पांति के भेद-भाव बिलकुल उठा दिये थे, पर बहुत-से ऐसे लोग भी थे कि जो बौद्ध-संघ में शामिल न हो सकते थे-एक वह जिन्हें छूत की बीमारी हो ; दूसरे राज-पुरुष ; तीसरे चोर जो दण्ड पा चुके हों ; जो क्रीतदास हों; जो कर्जदार हों, जिनकी उम्र १५ वर्ष से कम हो और जो नपुं- सक हो । संघ में भर्ती होने के पहले हरेक व्यक्ति को प्रव्रज्या ग्रहण करनी पड़ती थी। इसके बाद एक संस्कार किया जाता था कि जिसे उपसम्पदा कहते हैं और इसके बाद वे भिक्षु और भिक्षुणी पद के अधिकारी होते थे और भिक्षु-संघ में भर्ती कर