५७ बौद्ध-संघ . के लिए बनाये गये थे। उपनिपदों में, रामायण में, महाभारत में ऋषियों-मुनियों और तपस्त्रियों के वर्णन मिलते हैं. और उनके आचार-विचार व नियमों का वर्णन मिलता है। वही नियम और आचार-विचार बौद्ध-धर्म की बुनियाद है; पर बुद्ध ने अपने धर्म का प्रचार करने के लिए नये-नये उपायों, रीतियों और मार्गों का अवलम्बन किया कि जिससे अधिक-सं-अधिक प्रगति के साथ धर्म का प्रचार हो सकता है। उसने सोचा कि किस तरह अधिक-से- अधिक संख्या में लोगों को अपने मत में मिलाया जाय । धार्मिक इतिहाप्सों में यह सबसे पहली घटना है कि एक हिन्दुस्तानी आदमी, हिन्दुओं का धर्माचार्य, हिन्दुओं से सम्बन्ध रखनेवाले धर्म को हिन्दुस्तान ही में नहीं,वरन् हिन्दुस्तान के बाहर देशों में भी, गैर हिन्दुओं की रग-रग में भर दे। बुद्धने अपने सैकड़ों भिक्षुओं को भारत के बाहर अन्य देशों में भेजकर करोड़ों मनुष्यों को बौद्ध धर्मावलम्बी बनाया और आस-पास के सभी टापुओं व देशों में, जैसे चीन, जापान, लङ्का, जावा, सुमात्रा व अनेकों में बौद्ध-धर्म को फैला दिया। जैसाकि हम कह चुके हैं, यद्यपि युद्ध के समय में अनेकों सन्यासी, साधु और धार्मिक-संघ थे, किन्तु भारत के बाहर भार- तीय सभ्यता का प्रचार करना और अभारतीयों को भारतीय संस्कारों की शिक्षा देना बुद्ध का ही काम था, जोकि हिन्दुओं इतिहास में सबसे निराला और पहला ही था। विनयपिटक में लिखा है कि उस समय डरवेल काश्यप,
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